मेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
यक़ीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो
जो हँस रहा है वो ज़ख़्मों से चूर निकलेगा
अमीर क़ज़लबाश
तमाम उम्र-ए-रवाँ का मआल हैरत है
जवाब जिस का नहीं वो सवाल हैरत है
ये ज़िंदगी तो तिरे साथ साथ ख़त्म हुई
जो मुझ में बाक़ी है वो ला-ज़वाल हैरत है
हुई तिलिस्म-ज़दा जब ये आइने ने कहा
यहाँ तो सारे का सारा जमाल हैरत है
~ तस्नीम आबिदी
आने वाले वक्त में ज़िंदा रहा तो ये पंक्तियाँ ज़रूर नई नस्लों को सुनाऊँगा-
जब मर रहे थे लोग और सब ग़मगीन थे।
राजा के महल फिर भी निर्माणाधीन थे।।
गुहार लगा कर के गुजर गई जिंदगियाँ-
और सिस्टम के सारे तार तमाशबीन थे।
जो गर्दिश के दिनों में जी रहे थे विरोधी-
उनके लिए सियासी मौक़े बेहतरीन थे।
मिल रही थी साँसें कई गुना दाम देकर-
कालाबजारियों के तो वो दिन हसीन थे।
मदद करने वाले फ़रिश्तों की क्या कहूँ-
वो हारे हुये कितने ही घरों के यक़ीन थे।
✍🏻#Shekhar
Romantic Shayari जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा With Tejender Negi🇮🇳❣️
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