Pandavo ka Himalay Gaman-Mahabharat Story-पाण्डवों का हिमालय गमन – महाभारत, Read here full Mahabharat story hindi me . Mahabharat hindi me ,Mahabharata Stories, महाभारत की कथाएँ, Mahabharat in hindi -Pandav ka gaman.

धर्मराज युधिष्ठिर के शासनकाल में
हस्तिनापुर की प्रजा सुखी तथा समृद्ध थी। कहीं भी किसी प्रकार का शोक व भय आदि नहीं था। कुछ समय बाद श्रीकृष्ण से मिलने के लिये अर्जुन द्वारिकापुरी गये। जब उन्हें गए कई महीने व्यतीत हो गये, तब धर्मराज युधिष्ठिर को विशेष चिन्ता हुई।
वे भीम से बोले- “हे भीमसेन! द्वारका का समाचार लेकर भाई अर्जुन अभी तक नहीं लौटे और इधर काल की गति देखो। सम्पूर्ण भूतों में उत्पात होने लगे हैं। नित्य अपशकुन होते हैं। आकाश में उल्कापात होने लगे हैं और पृथ्वी में भूकम्प आने लगे हैं। सूर्य का प्रकाश मध्यम-सा हो गया है और चन्द्रमा के इर्द-गिर्द बारम्बार मण्डल बैठते हैं।
आकाश के नक्षत्र एवं तारे परस्पर टकरा कर गिर रहे हैं।
पृथ्वी पर बारम्बार बिजली गिरती है। बड़े-बड़े बवण्डर उठकर अन्धकारमय भयंकर आंधी उत्पन्न करते हैं। सियारिन सूर्योदय के सम्मुख मुँह करके चिल्ला रही हैं। कुत्ते बिलाव बारम्बार रोते हैं। गधे, उल्लू, कौवे और कबूतर रात को कठोर शब्द करते हैं। गौएँ निरंतर आँसू बहाती हैं। घृत में अग्नि प्रज्जवलित करने की शक्ति नहीं रह गई है। सर्वत्र श्रीहीनता प्रतीत होती है। इन सब बातों को देखकर मेरा हृदय धड़क रहा है। न जाने ये अपशकुन किस विपत्ति की सूचना दे रहे हैं। क्या भगवान श्रीकृष्णचन्द्र इस लोक को छोड़कर चले गये या अन्य कोई दुःखदाई घटना होने वाली है?”
उसी क्षण आतुर अवस्था में अर्जुन द्वारका से वापस आये। उनके नेत्रों से अश्रु बह रहे थे, शरीर कान्तिहीन था और गर्दन झुकी हुई थी। वे आते ही धर्मराज युधिष्ठिर के चरणों में गिर पड़े।
तब युधिष्ठिर ने घबरा कर पूछा-
“हे अर्जुन! द्वारकापुरी में हमारे सम्बंधी और बन्धु-बान्धव सव्ही लोग तो प्रसन्न हैं न? हमारे नाना शूरसेन तथा छोटे मामा वसुदेव तो कुशल से हैं न? हमारी मामी देवकी अपनी सातों बहनों तथा पुत्र-पौत्रादि सहित प्रसन्न तो हैं न? राजा उग्रसेन और उनके छोटे भाई देवक तो कुशल से हैं न? प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, साम्ब, ऋषभ आदि तो प्रसन्न हैं न? हमारे स्वामी भगवान श्रीकृष्णचन्द्र, उद्धव आदि अपने सेवकों सहित कुशल से तो हैं न? वे अपनी सुधर्मा सभा में नित्य आते हैं न? सत्यभामा, रुक्मिणी, जाम्वन्ती आदि उनकी सोलह सहस्त्र एक सौ आठ पटरानियाँ तो नित्य उनकी सेवा में लीन रहती हैं न? हे भाई अर्जुन! तुम्हारी कान्ति क्षीण क्यों हो रही है और तुम श्रीहीन क्यों हो रहे हो?”
धर्मराज युधिष्ठिर के प्रश्नों की बौछार से अर्जुन और भी व्याकुल एवं शोकाकुल हो गये। उनका रंग फीका पड़ गया, नेत्रों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी, हिचकियाँ बँध गईं, रुँधे कण्ठ से उन्होंने कहा- “हे भ्राता! हमारे प्रियतम भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने हमें ठग लिया, वे हमें त्याग कर इस लोक से चले गये।
जिनकी कृपा से मेरे परम पराक्रम के सामने
देवता भी सिर नहीं उठाते थे, मेरे उस परम पराक्रम को भी वे अपने साथ ले गये। प्राणहीन मुर्दे जैसी गति हो गई मेरी। मैं द्वारका से भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की पत्नियों को हस्तिनापुर ला रहा था, किन्तु मार्ग में थोड़े से भीलों ने मुझे एक निर्बल की भाँति परास्त कर दिया। मैं उन अबलाओं की रक्षा नहीं कर सका। मेरी वे ही भुजाएँ हैं, वही रथ है, वही घोड़े हैं, वही गाण्डीव धनुष है और वही बाण हैं, जिनसे मैंने बड़े-बड़े महारथियों के सिर बात की बात में उड़ा दिये थे। जिस अर्जुन ने कभी अपने जीवन में शत्रुओं से मुँहकी नहीं खाई थी, वही अर्जुन आज कायरों की भाँति भीलों से पराजित हो गया।
उनकी सम्पूर्ण पत्नियों तथा धन आदि को भील लोग लूट ले गये
और मैं निहत्थे की भाँति खड़ा देखता रह गया। उन भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के बिना मेरी सम्पूर्ण शक्ति क्षीण हो गई है। आपने जो द्वारका में जिन यादवों की कुशल पूछी है, वे समस्त यादव ब्राह्मणों के शाप से दुर्बुद्धि अवस्था को प्राप्त हो गये थे और वे अति मदिरा पान करके परस्पर एक-दूसरे को मारते-मारते मृत्यु को प्राप्त हो गये। यह सब उन्हीं भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की लीला है।”
अर्जुन के मुख से श्रीकृष्ण के स्वधाम गमन
और सम्पूर्ण यदुवंशियों के नाश का समाचार सुनकर युधिष्ठिर ने तुरन्त अपना कर्तव्य निश्चित कर लिया और अर्जुन से बोले- “हे अर्जुन! भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने अपने इस लौकिक शरीर से इस पृथ्वी का भार उतार कर उसे इस प्रकार त्याग दिया, जिस प्रकार कोई काँटे से काँटा निकालने के पश्चात् उन कोनों काँटों को त्याग देता है। अब घोर कलियुग भी आने वाला है। अतः अब शीघ्र ही हम लोगों को स्वर्गारोहण करना चाहिये।”
जब माता कुन्ती ने भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के स्वधाम गमन
का समाचार सुना तो उन्होंने श्रीकृष्णचन्द्र में अपना ध्यान लगाकर शरीर त्याग दिया। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने महापराक्रमी पौत्र परीक्षित को सम्पूर्ण जम्बूद्वीप का राज्य देकर हस्तिनापुर में उसका राज्याभिषेक किया और शूरसेन देश का राजा बनाकर मथुरापुरी में अनिरुद्ध के पुत्र बज्र का राजतिलक किया। तत्पश्चात् परमज्ञानी युधिष्ठिर ने प्रजापति यज्ञ किया और श्रीकृष्ण में लीन होकर सन्यास ले लिया। उन्होंने मान, अपमान, अहंकार तथा मोह को त्याग दिया और मन तथा वाणी को वश में कर लिया। सम्पूर्ण विश्व उन्हें ब्रह्म रूप दृष्टिगोचर होने लगा।
उन्होंने अपने केश खोल दिये,
राजसी वस्त्राभूषण त्याग कर चीर वस्त्र धारण करके और अन्न-जल का परित्याग करके मौनव्रत धारण कर लिया। इतना करने के बाद बिना किसी की ओर दृष्टि किये घर से बाहर उत्तर दिशा की ओर चल दिये। भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी ने भी उनका अनुकरण किया।
भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के प्रेम में मग्न होकर
वे सब उत्तराखंड की ओर चल पड़े। उधर विदुर ने भी प्रभास क्षेत्र में भगवन्मय होकर शरीर त्याग दिया और अपने यमलोक को प्रस्थान कर गये। सभी पाण्डव मार्ग में श्रीहरि के अष्टोत्तरशत नामों का जप करते हुए यात्रा कर रहे थे। उस महापथ में क्रमश: द्रौपदी, सहदेव, नकुल, अर्जुन और भीमसेन एक-एक करके गिर पड़े। अब मात्र युधिष्ठिर ही जीवित बचे थे। कहते हैं कि देवराज इन्द्र के द्वारा लाये हुए रथ पर आरूढ़ होकर वह स्वर्ग चले गए।
Read More On p-page here . Get Best stories to read here :
Pandavo ka Swargarohan-Mahabharat kahani hindi me—
- holika aur prahlad-प्रहलाद
- Mortal Kombat (2021) Movie Hindi Explained | Mortal Kombat (2021) Movie Explained in Hindi | 2021
- Real Ghost Stories | भूतों की कहानिया | Hindi Horror Stories by Horror Podcast
- #shorts #gymlover #fitness mehant. motivation👿bodybuilding💪 best💯 gym status👿
- Bloody Sunday HORROR STORY EPISODE NO :- 157 Hindi Horror Stories
- Har Dil Jo Pyar Kare Ga ( Jhankar ) Hot Romantic Love Story | New Love Story Video | Hindi Hitt Song
- वीराने की चुड़ैल – Horror Kahaniya | Horror Stories | Haunted Stories | Chudail Kahani | Bhootiya
- Ekta Kapoor Spotted Outside Shree Mukteshwar Temple At Juhu
- डरावनी भ्हूतो की सच्ची घटनाए | HORROR STORIES IN HINDI
- sara ali khan songs,ara ali khan movie,sara ali khan bikini #shorts