Title~ शहर
Movie/Album~ गुलाल 2009
Music~ पियूष मिश्रा
Lyrics~ पियूष मिश्रा, स्वानंद किरकिरे
Singer(s)~ पियूष मिश्रा, स्वानंद किरकिरे
एक बखत की बात बताएँ, एक बखत की
जब शहर हमारो सो गयो थो, रात गजब की
चहूँ ओर सब ओर दिशा से लाली छाई रे
जुगनी नाचे चुनर ओढ़े खून नहाई रे
सब ओरो गुल्लाल पुत गयो बिपदा छाई रे
जिस रात गगन से खून की बारिश आई रे
जिस रात सहर में खून की बारिश आई रे
सराबोर हो गयो सहर और सराबोर हो गयी धरा
सराबोर हो गयो रे जत्था इंसानों का पड़ा-पड़ा
सभी जगत ये पूछ्या था जब इतना सब कुछ हो रयो थो
तो सहर हमारो काईं-बाईसा आँख मूँद कै सो रयो थो
तो सहर ये बोल्यो नींद गजब की ऐसी आई रे
जिस रात गगन…
सन्नाटा वीराना खामोशी अनजानी
जिंदगी लेती है करवटें तूफानी
घिरते हैं साए घनेरे से
रूखे बालों को बिखेरे से
बढ़ते हैं अँधेरे पिशाचों से
कापें है जी उनके नाचों से
कहीं पे वो जूतों की खटखट है
कहीं पे अलावों की चटपट है
कहीं पे है झिंगुर की आवाजें
कहीं पे वो नलके की टप-टप है
कहीं पे वो खाली सी खिड़की है
कहीं वो अँधेरी सी चिमनी है
कहीं हिलते पेड़ों का जत्था है
कहीं कुछ मुंडेरों पे रखा है
सुनसान गली के नुक्कड़ पर जो कोई कुत्ता चीख-चीख कर रोता है
जब लैंप पोस्ट की गंदली पीली घुप्प रौशनी में कुछ-कुछ सा होता है
जब कोई साया खुद को थोड़ा बचा-बचाकर गुम सायों में खोता है
जब पुल के खम्बों को गाड़ी का गरम उजाला धीमे-धीमे धोता है
तब शहर हमारा सोता है..
जब शहर हमारा सोता है तो
मालूम तुमको हाँ क्या-क्या क्या होता है
इधर जागती है लाशें
जिंदा हो मुर्दा उधर ज़िन्दगी खोता है
इधर चीखती है एक हव्वा
खैराली उस अस्पताल में बिफरी सी
हाथ में उसके अगले ही पल
गरम मांस का नरम लोथड़ा होता है
इधर उगी है तकरारें जिस्मों के झटपट लेन-देन में ऊँची सी
उधर घाव से रिसते खूं को दूर गुज़रती आँखें देखें रूखी सी
लेकिन उसको लेके रंग-बिरंगे महलों में गुंजाईश होती है
नशे में डूबे सेहन से खूंखार चुटकुलों की पैदाइश होती है
अधनंगे जिस्मों की देखो लिपी-पुती सी लगी नुमाइश होती है
लार टपकते चेहरों को कुछ शैतानी करने की ख्वाहिश होती है
वो पूछे हैं हैरां होकर, ऐसा सब कुछ होता है कब
वो बतलाओ तो उनको ऐसा तब-तब, तब-तब होता है
जब शहर हमारा…